आयुर्वेद भवन (आयुर्वेद चिकित्सालय)


आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति जन-साथधारण की सेवा के लिए गोलोकवासी वैद्यराज पं० रामनारायण शर्मा आयुर्वेद-भवन का निर्माण हुआ, जिसमें चिकित्सा कार्य का संचालन वैद्यराज पं० श्री रामनारायण शर्मा लगभग एक दशक तक स्वयं करते रहे। अब भी योग्य चिकित्सकों द्वारा यह आयुर्वेद भवन चलाया जा रहा है। वर्तमान में सिद्ध आयुर्वेदिक औषधियों के द्वारा चिकित्सा हेतु दूर-दूर से रोगी यहाँ आते हैं एवं इस औषधालय की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।



 

मंदिर गौशाला


गौशाला में स्वस्थ गायों का पालन किया जाता है। गायों से प्राप्त सम्पूर्ण दूध का उपयोग मन्दिर में ठाकुरजी की सेवा हेतु ही किया जाता है | गोपाल की जन्मभूमि पर अवस्थित गौशाला में गायों के दर्शन एवं गौशाला के रख-रखाव को देखकर श्रद्धालुजन अभिभूत हो उठते हैं। भक्त-जनों का तो यह भी मानना है कि जिन गायों का दुग्ध गोपाल के भोग मे नित्य लगता है, धन्य हैं वह गौ-धन, एवं धन्य है ऐसी गायों के दर्शन | निश्चित रूप से इन्हीं गायों में भगवान्‌ की लाडूली गाय विद्यमान है।



गौसेवा प्रकल्प


संस्थान्न ने सड़कों पर घुमने वाले निराश्चित / लावारिस ऐसे गौवंश जिन्हें उनके पालक सड़क पर लापरवाही पूर्वक छोड़ देते हैं, की चिकित्सा व मृत हुए गौवंश को दुर्दशा से बचाने हेतु विधिपूर्वक समाधि प्रदान करने का संकल्प लिया है। पूर्व में मृत गौवंश को या तो श्रद्धालु जन श्रीयमुनाजी में प्रवाहित कर देते थे अथवा स्वार्थी जन मृत गौवंश की खाल आदि निकाल कर उनके शरीर को इधर-उधर फेंक देते थे। इससे जहाँ श्रीयमुनाजी में प्रदूषण बढ़ रहा था, वहीं श्रद्धालुओं को भी हार्दिक कष्ट होता था। अतः संस्थान का यह प्रकल्प जहाँ गौ-सेवा के लिए समर्पित है वहाँ पर्यावरण के लिए भी अत्यन्त उपयोगी है।



मानव शव अंतिम संस्कार सेवा


तीर्थनगरी मथुरा पुरी में देह त्याग करनेवाले अज्ञात (लावारिस) स्थिति में पाये जाने वाले मानव शर्वों के विधिवत्‌ संस्कार एवं मृतात्माओं की सदूगति के उद्देश्य से सम्पूर्ण ब्रजमण्डल में अकेले संस्थान द्वारा ही इस अभिनव प्रकल्प का संचालन किया जा रहा है।
पूर्व में लावारिस अवस्था में देह त्याग करनेवाले जनों के अन्तिम संस्कार की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। अतः प्रायः लोग ऐसे लावारिस शर्वों को श्रीयमुनाजी में प्रवाहित कर देते थे, जिससे जहाँ यमुना जल और प्रदूषित हो रहा था वहीं शवों की भी दुर्दशा होती थी | मृत शवों को खाकर कछुए, मछली भी अकाल मृत्यु को प्राप्त करते थे। इस प्रकल्प के संचालन से जहाँ किंचित रूप से श्रीयमुनाजी को प्रदूषण मुक्त करने में योगदान हो रहा है वहीं मोक्षपुरी मथुरा में देह त्याग करनेवाले जनों का शास्त्रोक्त विधि से अन्तिम संस्कार भी ।



तीर्थोद्धार सेवा प्रकल्प


ब्रजमण्डल में स्थित पौराणिक महत्व के कुण्ड ललीलास्थलों एवं देवस्थानों के रख रखाव व सौन्दर्यीकरण हेतु यह प्रकल्प समर्पित है। इस प्रकल्प के द्वारा संस्थान ने श्रीगिरिराज परिक्रमा में स्थित ग्वाल पोखरा (जहाँ कि भगवान्‌ ने ग्वाल बालों के साथ जल-क्रीड़ा में भाग लिया था।) का जीर्णोद्वार कराने के स्राथ-साथ राधाजी की जन्मभूमि बरसाना एवं नन्दर्गाव में भी कुछ कार्य कराए हैं।



श्री यमुना सेवा प्रकल्प


श्री यमुना जी में दृष्टव्य गन्दगी, जीव जन्तु के शव, निर्माल्य पूजा सामग्री आदि को हटाकर घाटों को स्वच्छ रखने का कार्य इस प्रकल्प के माध्यम से किया जा रहा है। संस्थान का यह प्रयास - "स्वच्छ यमुना निर्मल यमुना" को साकार करने में अपना अकिंचन योगदान मात्र है।