मथुरा तथा श्रीकृष्ण - सदा अविभाज्य


भगवान श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव ब्रजमण्डल की मधथुरा-पुरी में हुआ और सम्भवतः इसी कारण वह भारत की सात मोक्षदायिनी पुरियों में मानी गयी -


अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥
(नारद पु. २७-३५; गरुड़ उतर. २७-०३)



परन्तु मथुरा पुरी का इतिहास भगवान्‌ श्रीकृष्ण के प्राकट्रय-काल से भी पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान्‌ श्री राम के छोटे भाई शत्रुधन जी ने लवणदैत्य का वध कर मधुरा नामक पुरी की स्थापना की थी -


हत्वा च लवणं रछो मधुपुत्रं महाबलं |
शत्रुधनो मधुरां नाम पुरी यत्र चकार वै ||
(श्री विष्णुपुराण १-१२-४)



वह "मधुरा" आगे चलकर "मथुरा" के नाम से प्रसिद्ध हुई, जहाँ क्रकर्मी राजा कंस के कारागार में भगवान्‌ श्रीकृष्ण प्रकट हुए।


विद्वानों के कथानुसार आज का "कटरा केशवदेव" ही कंस कारागार एवं प्राचीन मथुरा का केन्द्र-स्थान है। श्री ग्राउस (मथुरा के सुप्रसिद्ध जिलाधीश तथा मथुरा पुरातत्व संग्रहालय के संस्थापक) ने मथुरा के प्राचीन इतिहास का अनुसन्धान और अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि कटरा केशवदेव तथा उसके आस-पास दिखायी पड़ने वाले खण्डहरों पर ही मथुरा बसी हुई थी।


मथुरा के इतिहास सम्बन्धी सामग्री का अच्छी प्रकार अध्ययन कर विदेशी विद्वान श्री कनिंधम ने अपने पुरावशेष आपरीक्षण-प्रतिवेदन के खण्ड २० के पृष्ठ ३१ पर लिखा है -


 i) वनवासी नृपति मधु का प्राचीनतम स्थान मधुपुर रहा है, जो आजकल महोली नाम से प्रसिद्ध है ।
ii) मधु नूपति की पराजय के पश्चात्‌ आर्यवर्ग के नगर का निर्माण भी भूत्तेश्वर मन्दिर को केन्द्र बनाकर वर्तमान कटरा के स्थान पर ही हुआ था।
iii) भूमिका परीक्षण करके एवं कई बौद्ध स्मारकों की सापेक्ष स्थिति के सम्बन्ध में श्री ग्राउस के द्वितीय निष्कर्ष से मैं सहमत पा सभी लोग एकमत हैं कि प्राचीन नगर का स्थान कटरा केशवदेव ही है ।


और कनिंघम ने और भी बताया है - आजकल के केशोपुरा मोहल्ला में ही कटरा स्थित रहा है और बहुत प्राचीनकाल से केशव भगवान्‌ का महान मन्दिर निःसन्देह इसी स्थान पर रहा है, तथा उसका कई बार विध्वंश और पुनर्निमाण हुआ। मैं समझता वास कि आर्यवर्ग के केसोबोरा या खिसोबोरा और प्लिनी का यह केशवपुरा ही है।

श्रीकृष्ण जन्मस्थान के जीर्णोद्वार के समय प्राप्त पुरातत्व अवशेष