बसंत पंचमी


बसंत पंचमी के दिन भगवान्‌ को बसन्ती वस्त्र, आभूषण आदि श्रृंगार धारण करवाए जाते हैं। सम्पूर्ण श्रीकेशवदेव मन्दिर प्रांगण को बसन्ती वस्त्र, पुष्प, पन्न आदि से सजाया जाता है। चारों ओर फैली बसन्ती छटा एवं भगवान्‌ का बसन्ती श्रृंगार एक दिव्य अनुभूति कराते हैं ।



यमुना षष्ठी


श्री यमुनाजी के जन्म दिवस पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि से एक विशाल शोभा-यात्रा यमुना घूजज्न हेतु विश्राम घाट तक जाती है। शोभा-यात्रा में सैंकड़ों भक्त नर-नारी दुग्ध के कलश, पूजन सामग्री एवं भोग आदि को सिर पर रखकर यात्रा के साथ चलते हैं। यह एक अलौकिक आयोजन है।



श्री जगन्नाथ यात्रा


आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन भगवान्‌ श्रीजगन्‍नाथजी की शोभा-यात्रा जन्मस्थान से प्रारम्भ होकर सम्पूर्ण नगर में भ्रमण करती है। शहनाई, ढोल नगाड़े आदि मंगल वाद्य यन्त्रों की पवित्न ध्वनि में हरिनाम संकीर्त्तन करते हुए हजारों संत, भक्त-जन इसमें सम्मिलित होते हैं। जिस लकड़ी के रथ पर विराजमान होकर भगवान्‌ जगन्‍नाथजी, सुभद्राजी, एवं बलरामजी यात्रा में निकलते हैं वह रथ अत्यन्त ही आकर्षक एवं भव्य है।



गुरु पूर्णिमा


जन्मस्थान के पवित्र परिसर में स्थानीय भक्तों के सहयोग से गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विशाल प्रसाद भण्डारा एवं छप्पन भोग का आयोजन किया जाता है। हजारों की संख्या में भक्त जन दिव्य प्रसाद ग्रहण करते हैं।

 

शरद पूर्णिमा


शरद पूर्णिमा पर भगवान्नु ने महारास की लीला की थी। अतः श्रीकृष्ण चबूतरे पर पवित्र चाँदनी रात में महारास के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर भगवान्‌ श्रीकेशवदेवजी के मन्दिर में भव्य सजावट कर मन्दिर को चन्द्र लोक का रूप देने का प्रयास किया जाता है।यह एक अद्भुत आयोजन है।



घटा दर्शन


आवण मास में ब्रज की परम्परानुसार जन्मस्थान पर क्रम से केसरी घटा, हरी घटा, बैंगनी घटा, लाल घटा, काली घटा, गुलाबी घटा एवं सफेद घटाओं का सुन्दर आयोजन किया जाता है। श्रावण शुक्ल एकादशी को श्रीकेशवदेव मन्दिर में आयोजित होनेवाली "काली घटा" के दर्शनार्थ देश विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पधारते हैं। ध्वनि, प्रकाश, पत्र, वस्त्र आदि के अदभुत संयोजन से बनी यह मनोहारी घटा विश्व प्रसिद्ध है।

 


श्री कृष्ण जन्माष्ठमी


कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मथुरा का महत्व बैकुण्ठ से भी अधिक बताया गया है, ऐसी सन्‍त भक्त जनों की मान्यताएं हैं। बैकुण्ठ में तो भगवान्‌ वास करते ही हैं, किन्तु प्रभु ने जन्म की लीला मथुरा में की है। अतः जन्मोत्सव का आयोजन एवं दर्शन का महत्व मथुरा में सर्वाधिक एवं अलौकिक है । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन प्रातः भगवान्र्‌ की मंगला आरती एवं अभिषेक होता है। उसके उपरान्त लीलामंच पर सन्त महात्माओं की दिव्य उपस्थिति में प्रभु को पुष्पांजलि अर्पित की जाती है।

मुख्य कार्यक्रम रात्रि में ११.०० बजे प्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम श्रीगणेश एवं ज्ञवग्रह पूजन आदि का कार्यक्रम होता है। तदोपरान्त गर्भ-स्तुति का गायन किया जाता है। रात्रि में ठीक १२.०० बजे भगवानू के प्राकट्रय दर्शन एवं आरती होती है। तदोपरान्त भगवान्‌ का दिव्य जन्माभिषेक पंचामृत से किया जाता है। तदोपरान्त भगवान्‌ की श्रृंगार आरती एवं शयन आरती की जाती है। भगवान्‌ के प्राकट्य दर्शन रात्रि में 9.३० तक रहते हैं।



नन्दोत्सव


कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन भागवत भवन में प्रातः नन्दोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। उपस्थित भक्तों को बृहद मात्रा में खेल-खिलौने, मिष्ठान्न, एवं वस्त्रादि लुटाये जाते हैं। दोपहर १२.०० बजे के बाद प्रसाद भण्डारे का आयोजन किया जाता है।



 

दीपवाली


इस दिन भक्तों के सहयोग से श्रीकेशवदेवजी मन्दिर प्रांगण में वृहद्‌ रूप से दीपदान कार्यक्रम आयोजित होता है तथा सम्पूर्ण परिसर को भव्य रूप से सजाया जाता है ।



अन्नकूट (गोवर्धन पूजा)


इस दिन संस्थान द्वारा भव्य छप्पन भोग वृहद रूप से श्रीगिरिराज मन्दिर, औराधाकृष्ण मन्दिर एवं अन्य मन्दिरों में अर्पित किया जाता है ।



श्री गोपाष्टमी


गोपाल की जन्मभूमि पर गोपाष्टमी के दिन भगवान्‌ केशवदेवजी को ग्वाले के रूप में पोशाक एवं श्रृंगार धारण करवाया जाता है। भगवान्‌ केशवदेव मन्दिर में ब्रजरज, पुष्प, वृक्ष आदि सामग्री से एक वन के रूप में सज्जा की जाती है। इस दिन गौ पूजन एवं सेवा का बहुत महत्व है ।



 

महाशिवरात्रि


महाशिवरात्री दिवस पर जनन्‍्मस्थान में स्थित केश्वेश्वर महादेव (पारद शिवलिंग) का विशेष पूजन किया जाता है। भगवान्‌ के पूजन अभिषेक आदि का कार्यक्रम प्रातः काल से शुरू हो जाता है, जो पूरी रात्रि भर चलता रहता है।

इस अवसर पर सांय काल एक भव्य शिव बारात जन्मस्थान से निकाली जाती है जो नगर भ्रमण कर वापस जन्मस्थान पहुँचती है। इस बारात में भगवान्‌ शिव नन्‍दी बैल पर विराजमान होकर चलते हैं एवं उनके साथ मंगल ध्वनियों पर नाचते हुए भूत प्रेत आदि उनके गण चलते हैं। बारात के आगे भगवान्‌ ब्रह्मा, विष्णु एवं अन्य देवगणों के स्वरूप चलते हैं।



लठमार होली


जन्मस्थान पर इस विश्व विख्यात होली कार्यक्रम का आयोजन होली से पूर्व रंग भरी एकादशी के दिन होता है। ब्रज के विभिन्‍न भागों में होली के अवसर पर आयोजित होनेवाले कार्यक्रमों को जन्मस्थान के लीलामंच एवं प्रांगण में आय्योजित किया जाता है। इस आयोजन को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु जन पधारते हैं।